Wednesday, September 1, 2010

पत्रकारिता एक छाता है !

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पत्रकारिता एक छाता है !


काफी समय पहले पत्रकार की छवि आम जनता की नज़र में न्यायवादी व्यक्ति के रूप में होती थी जो की सही को सही और गलत को गलत ही कहता था पत्रकारिता करना लोगो का धंधा नहीं वरन शौक था लेकिन समय बदला पत्रकार बदले और पत्रकारिता का स्वरुप भी बदला | खास कर छोटे शहर के पत्रकार तो पत्रकार सिर्फ इसलिए ही बनते है की उनके गैर क़ानूनी काम और ठेकेदारी पत्रकारिता के छाते के नीचे आसानी से चल सके | कानपुर शहर के कुछ क्या काफी सारे पत्रकार ऐसें ही है जो की कहते है की पत्रकरिता तो एक छाता है जिसमे उपरी खर्च आसानी से निकल आते है और सरकारी दफ्तरों में सेटिंग भी हो जाती है जिससे अपने उपरी काम और ठेकेदारी आसानी से चल जाती है /

कानपुर और उसके आस पास के जिलो मे सैकड़ो की संख्या में ऎसे  तथाकथित पत्रकार और संस्थान मौजूद है जो की अपने अख़बार को तथाकथित पत्रकारों के हाथो में 5 से 50000 हज़ार मे आसानी से बेच देते है जिससे  की आप आसानी से अपने क्षेत्र  में और शहर में  उस ब्रांड यानि छाते की आड़ में अपने काम बखूबी निपटा सकते है /



लखनऊ न्यूज़ पोर्टल और एक चैनल के मालिक तो साफ साफ यह कहते पाए गय की मेरी गन आईडी यानि चैनल का नाम एक कट्टा है 10 हज़ार दो और कट्टा का लाइसेंस ले जाओ /



ऐसे ही एक अख़बार के मालिक जो की साफ्ताहिक अख़बार का आर एन आई नंबर ले आय , पेपर चालू करने के लिए | जब एक सज्जन पत्रकर को मालूम तो उन्होने उनसे संपर्क किया की सर मेरे लायक कोई काम हो तो, बताएं तो सर ने कहा की देखो ये 500 आई कार्ड मैने बनवा लिए है जो की करीब 50 हज़ार तक में बिक जायेंगे जिससे करीब एक दो महीने पेपर निकल जायेगा और फिर जिला और तहसील स्तर पर रिपोर्टर भी 5 5 हज़ार में बन जायेंगे  / उन्होने बताया की मैने मन ही मन सोचा की ये समाचार पत्र निकाल रहे है या किसी कंपनी का कोई प्रोडक्ट बेच रहे है /शायद इनकी नज़र में पत्रकारिता एक प्रोडक्ट यानि छाता है /



एक और सच्ची घटना से आपको अवगत कराता हू जो की कानपुर शहर के पास के कन्नौज की है जहा पर एक तथाकथित पत्रकार महोदय एक मेडिकल स्टोर में दवा लेने गय  और दुकान दार ने आम ग्राहक की तरहं ही उसको भी दवा दे दी लेकिन उसको क्या पता था की ये जनाब एक पत्रकार है ,जब दुकानदार ने उनसे पैसे मांगे तो उन्होने कहा की यानि तथाकथित पत्रकार महोदय ने कहा की तू जानता नहीं की मै एक पत्रकार हु और अपनी तथाकथित पत्रकारिता का रौब उस दुकानदार पर गाठने  लगे और बदले में दुकानदार को ये कहकर धमकाते है की नकली दवा बेचने की खबर छापकर तुमको अन्दर करवा दूंगा नहीं तो अब तुम मेरे को कम से कम दो हज़ार रुपये दे दो / दुकानदार डर गया क्योंकि दूध में पानी आज के जमाने में हर कोई मिलाता है सो उस दुकानदार ने पैसे दे दिए और उनसे अपना पीछा छुड़ा लिया / लेकिन कहानी यहाँ पर ही नहीं खत्म होती है पत्रकार महोदय ने अपने तथाकथित पत्रकरों से भी घटना का जिक्र किए और हस कर बताया की साला डर गया और अगर तुम लोगो को भी इस महीने की सैलेरी लेनी है तो वहा पर चले जाना आसानी से मिल जाएगी / दुकानदार ने सबको यानि सभी तथाकथित पत्रकारों को सैलेरी बाटने से अच्छा समझा की दुकान ही न बंद कर दे सो उसने उस हफ्ते ही अपनी दुकान हमेशा के लिए बंद कर दी /



कानपुर शहर के कुछ थाने और चौकी में इसी तथाकथित पत्रकार रोज़ मिल जायेंगे जो अपने संस्थान तो शायद रोज़ न जाते हो लेकिन थाने और चौकियो के चक्कर टाइम से और रोजाना जरुर लगाते है / क्योकि वहा अपराधियों और पुलिस के बीच की दलाली करके हज़ार पांच सौ तो पैदा ही हो जायेंगे /



कानपुर के कुछ युवा पत्रकारों को देखकर यही लगता की क्या पत्रकार ऐसे भी होते है मैने बचपन में और फिल्मो में जब पत्रकारों को देखता था या उनके बारे में सुनता था तो यह की पत्रकार शालीन म्रदुभाशी और सभ्य होते है लेकिन आज के खास कर कानपुर के पत्रकारों और कैमरा मैन को देखने में शालीन लगते ही नहीं है सभ्यता तो उन्होने पत्रकार बनते ही छोड दी थी और म्रदुभासी तो वो युवा होते ही भूल गय थे / ट्राफिक सिग्नल हो या किसी सरकारी दफ्तर का नियम वो ये तथाकथित पत्रकार ऐसे  तोडते है की मानो सारे नियम इनसे परे है ट्राफिक सिपाही इन्हे वन वे या फिर रेड लाइट पर रोकने की भूल करता है तो बात उसकी वर्दी तक आ जाती है क्योंकि उन पत्रकारों की न्यूज़ अगर छूटी तो शायद उसकी नौकरी भी छुट जाय / ऐसा कहकर धमकाते है और अगले चौराहे पर किसी दुकान पर रूककर पान मसाला और सिगरेट पीने लगते है शायद यही उनसे छुट रही थी ! कहने का मतलब ये है की क्या पत्रकार बनने के बाद हमारे लिए किसी भी प्रकार के सरकारी और गैर सरकारी नियम मायने नहीं रखते है ?

क्या इतनी आसानी से 500 से 50000 हज़ार रुपये खर्च करके बना पत्रकार और 10000 से 20000 हज़ार रूपये का हैंडी कैम लेकर शादी बारात खीचने वाला कैमरा मैन दिन में किसी न्यूज़ चैनल के लिए काम करके सरकारी आदमी को हड़का कर आसानी से चला जा सकता है ?

शायद इनकी नज़र में पत्रकारिता एक छाता है और गन आई डी एक कट्टा !

प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया सभी कही न कही इस प्रकार के तथाकथित पत्रकार तैयार कर रहे है जो की पूरे मीडिया जगत और पत्रकारों को आए  दिन बदनाम करते है /

"कभी सुना करता था की कलम की ताकत क्या होती है

लेकिन शायद आज देख रहा हु की कलम की ताकत क्या होती है "
पंडित आशीष त्रिपाठी 

Posted By KanpurpatrikaWednesday, September 01, 2010